“राजा लौटा दो!” नेपाल में फिर गूंजा नारा, सड़क पर उतरे सिंहासन के सपने

हुसैन अफसर
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नेपाल में एक बार फिर राजशाही की वापसी की मांग ने जोर पकड़ लिया है। राजधानी काठमांडू समेत कई शहरों में हजारों लोग ‘राजा आऊ’ के नारे लगाते हुए सड़कों पर उतर आए।

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प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने लोकतंत्र को सीधी चुनौती देते हुए नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग भी रखी। इस आक्रोश का नेतृत्व कर रहे थे राजेन्द्र लिंगडेन और पूर्व गृहमंत्री कमल थापा, जिन्हें प्रतिबंधित क्षेत्र में घुसने की कोशिश पर गिरफ्तार कर लिया गया।

कमल थापा की गिरफ्तारी और बलुवाटर की ओर कूच

काठमांडू घाटी पुलिस के प्रवक्ता एपिल बोहोरा ने बताया कि करीब 1,200 प्रदर्शनकारी नारायण चौर से रैली निकालकर प्रधानमंत्री आवास बलुवाटर की ओर बढ़े।
सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश करते ही पुलिस ने लाठीचार्ज और गिरफ्तारी का सहारा लिया। इस बीच लिंगडेन और पुलिस के बीच झड़प भी हुई।

पूर्व राजा की तस्वीरों के साथ नारा: ‘गणतंत्र नहीं चाहिए!’

प्रदर्शनकारी पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की तस्वीरें लेकर आए थे और गणतंत्र विरोधी नारे लगा रहे थे।
उनका स्पष्ट संदेश था:

“जब तक राजशाही वापस नहीं आती, हम चैन से नहीं बैठेंगे।”

यानी बात अब सिर्फ ‘राजा की याद’ की नहीं, बल्कि ‘सत्ता में वापसी’ की सीधी मांग बन चुकी है।

लोकतंत्र में राजा की मांग—Irony का मुकुट किसे पहनाएं?

एक ओर नेपाल संवैधानिक लोकतंत्र है, दूसरी ओर लोग उसी लोकतंत्र में राजा को वापस बुला रहे हैं। तो सवाल ये है—क्या लोकतंत्र इतना लाचार हो गया है कि जनता फिर से ताज देखना चाहती है?
या ये सिर्फ पुरानी विरासत के लिए एक भावनात्मक उबाल है?

नेपाल के इस आंदोलन ने साबित किया है कि राजशाही की जड़ें मिटती नहीं, बस दब जाती हैं। अब देखना ये है कि सरकार इस उबाल को संविधान से शांत करती है या लाठियों से।

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